नैनीताल में दीवाली
ताल के ह्रदय बले
दीप के प्रतिबिम्ब अतिशीतल
जैसे भाषा में दिपते हैं अर्थ और अभिप्राय और आशय
जैसे राग का मोह
तड़ तडाक तड़ पड़ तड़ तिनक भूम
छूटती है लड़ी एक सामने पहाड़ पर
बच्चों का सुखद शोर
फिंकती हुई चिनगियाँ
बगल के घर की नवेली बहू को
माँ से छिपकर फूलझड़ी थमाता उसका पति
जो छुट्टी पर घर आया है बौडर से
2 comments:
bahut badhiya bhav
सिद,
होली के मौके पर दीवाली पर कविता भी खूब रही!!!
पुराने दिनो की अपनी होस्टल की यादे लिखे,
खासतौर पर इंटरर्होस्टल एसोसियेशन बनाने मे आपकी उन दिनो सक्रिय भूमिका थी. उसके बारे मे भी, अपने समय का दस्तावेज लिखे.
कुछ नाटक, अपने अभिनय, निरदेशन के जो भी प्रयोग आपने अपने छात्र-जीवन मे किये, नैनिताल मे वो भी लिखे.
मुझे आज बीस साल बाद भी आपकी याद आते ही "एक था गधा" और (एक काले कव्वे व चने वाले" नाटक मे आपका अभिनय याद आ जाता है.
अपना कुछ मौलिक लिखे, ऐसा मेरा आग्रह है, नैनीतालियो की तरफ से. आप के पास बाद के बरसो का भी काफी खज़ाना होगा,
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