मंगलेश डबराल मेरे पसंदीदा कवियों मे से है। उनकी एक कविता, उनके काव्य संकलन "पहाड़ पर लालटेन" से साभार.
अगले दिन
पहले उसकी सिहरती हुयी पीठ देखी
फ़िर दिखा चेहरा
पीठ जैसा ही निर्विर्कार
कितने सारे चहरे लांघकर आया हुआ
वह चेहरा जिस पर दो आँखे थी
सिर्फ़ देखती हुयी, कुछ न चाहती हुयी।
वह अकेली थी उस रात
वह कही जा रही थी अपना बचपन छोड़ कर
कितने सारे लोगो द्वारा आतंकित
कितने सारे लोगो द्वारा सम्मोहित
कितने सारे लोगो की तनी हुयी आँखों के नीचे
कितनी झुकी है उसकी आँखे
की वह देख नही पाती अपनी और आती मृत्यू
हर चीज़ के आख़िरी सिरे तक
वे उसके पीछे जायेंगे
जहा से एक सुरंग शुरू होती है
सुरंग मे कई पदों मे से एक पेड़ तले
बैठा होता है उसका परिवार
माँ-बाप, भाई बहन
और पोटलिया जिनमे भविष्य बंद है
सापों की तरह
वों सारा कुछ सोच कर रखेंगे
पहले से दया, पहले से प्रेम
पहले से तैयार थरथराते हाथ
वे उसे पा लेंगे बिना परिवार के
बिना बचपन के, बिना भविष्य के
और खींच ले जायेंगे एक जगह
कोई नही जान पायेगा किस जगह
डराते मंत्रमुग्ध करते
अगले दिन उसके भीतर
मिलेंगे कितने झडे पत्ते
अगले दिन मिलेगी खुरो की छाप
अगले दिन अपनी देह लगेगी बेकार
आत्मा हो जायेगी असमथ
कितने कीचड कितने खून से भरी
रात होगी उसके भीतर अगले दिन
ये ब्लॉग प्रवासी उत्तराखंड के लोगो का ब्लॉग है, जो देश -विदेश के हिस्सों मे दुनियाभर मे बिखरे हुए है. एक बड़ा हिस्सा उन भूतपूर्व विधार्थियों का भी है, जो एक अलग सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत लिए उत्तराखंड के स्कूल- कोलेजो मे पढने आए और अपने बनने -बिगड़ने की जद्दोजहद मे चाहे आज कुछ भी बने हो, पर उनका मानस विशुद्द रूप से उत्तराखंड की संस्कृति से सरोबार है। इसमे जाती, धर्म, या संकुचित क्षेत्रीयता नही है, और जो भी उत्तराखंड के मित्र यहाँ आना चाहे ईमेल भेजे; nainitaali@gmail.com
Saturday, July 12, 2008
Saturday, July 5, 2008
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