Sunday, January 6, 2008

उत्तराखंड की एक फसल -धान


धान जिससे चावल बनता है. धान की उत्पत्ति (एक फसल की तरह) उत्तर भारत (सम्भवत: उत्तराखन्ड) मे हुयी और यही से एक लम्बी एतिहासिक यात्रा करती हुयी ये चीन और एशिया के दूसरे भागो मे पहुंची. विश्व के उस भाग को जहा पहले पहल किसी पोधे को फसल का दर्ज़ा मिला, और जहा पर उस पोधे की कई किस्मे (जैव विविधता) पायी जाती है, उसे उस खास जाति का उत्पत्ति केन्द्र (center of origin) कहा जाता है. धान को एक उपयोगी फसल बनाने के लिये कुछ लक्षणो को चुना गया जो मनुष्य के बहुत मन माफिक थे परतु, पोधे के प्रक्रितिक संघर्ष के लिये बेहद नुक्सानदेह; पूरी की पूरी फसल का एक साथ पक जाना, बीज़ के तैयार होने के बावज़ूद पेड से न गिरना. ये दोनो ही लक्षण किसी भी पोधे के प्रक्रितिक रूप से विकास के लिये प्रतिकूल है. अधिकतर जंगली पोधे जो अपनी संतति के लिये मनुष्य पर निर्भर नही करते, उनमे एक ही पोधे के बीज़ एक बडे अंतराल मे पकते है और पकते ही पेड से झड जाते है, जिससे उन्हें उगने के लिये अपने अनुकूल मौषम मिलने मे आसानी हो. पर आज इस्तेमाल मे आने वाली सारी फसले अगर इस प्रक्रितिक नियम का पालन करें तो पूरी फसल की एक साथ कटाई सम्भव नही है. और इसी तरह बिना मनुष्य की सहायता के कोई भी फसल लम्बे समय तक अपना अस्तित्व नही बचा सकती. इसके अलावा कुछ दूसरे लक्षण भी चुने गये, जैसे चावल के सफेद रंग को लाल रंग के चावल की जगह वरीयता दी गयी. बासमती चावल को खुशबू के लिये चुना गया, और सभी चावल के दानो को एक निश्चित समय अवधि के भीतर पक जाने के लिये चुना गया. प्रक्रितिक रूप से हर दूसरे पोधे से आने वाले दाने, अलग-अलग समय मे पकते, और फिर किसी एक पतीले मे भात बनाना मनुष्य के लिये सम्भव न था. हमारी लोक् कथाओ. मे इस तरह के कई बिम्ब छुपे है, जिनका सन्दर्भ शायद एक जंगली घास का धान बनने की कहानी से हो. इसी तरह की एक कहानी मुझे गत वर्ष अपने प्यारे और सम्मानीय गिरीश तिवारी “गिर्दा” से बातचीत के दौरान पता चली. इस लोक कथा के हिसाब से एक परिवार अपने भोजन के लिये सिर्फ चावल का एक दाना हान्डी मे पकाता था, और हांडी भारत जाती थी, जो सब के लिये पर्याप्त थी. ऎक दिन इस परिवार मे अचानक ने कुछ मेहमान आते है, और एक की बज़ाय दो दाने मिला कर पकाये जाते है, परंतु हान्डी के आधे चावल कच्चे और आधे पके रहते है, और सभी को भूखा रहना पड्ता है. सम्भव् है कि ये लोक कथा उन दिनों का एक बिम्ब बचा रह गया हो हमारी स्म्रति मे, जब हर पोधे से निकलने वाले दाने पकने के लिये अलग अलग समय की मांग करते हो. और दो दानो की बजाय दो अलग अलग पोधो से निकले बीज़ उस हांडी मे पकाये गये हो.

2 comments:

Anonymous said...

धान नौ होमधान्यों में से एक है इसीलिए इसका अस्तित्व भारत से ही माना गया है।

अन्नपूर्णा

Tarun said...

dhanyvaad, itni bariya jaankari dene ke liye