ये ब्लॉग प्रवासी उत्तराखंड के लोगो का ब्लॉग है, जो देश -विदेश के हिस्सों मे दुनियाभर मे बिखरे हुए है. एक बड़ा हिस्सा उन भूतपूर्व विधार्थियों का भी है, जो एक अलग सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत लिए उत्तराखंड के स्कूल- कोलेजो मे पढने आए और अपने बनने -बिगड़ने की जद्दोजहद मे चाहे आज कुछ भी बने हो, पर उनका मानस विशुद्द रूप से उत्तराखंड की संस्कृति से सरोबार है। इसमे जाती, धर्म, या संकुचित क्षेत्रीयता नही है, और जो भी उत्तराखंड के मित्र यहाँ आना चाहे ईमेल भेजे; nainitaali@gmail.com
Sunday, November 23, 2008
दोस्त
वे आए
आठ-दस एक जीप में लदकर दूर गाँव से
और तनकर बैठे रहे कुर्सियों पर मेरे सामने
मुझ तक पहुँच कर भी कोई चीज़ रोकती रही उन्हें
मुझ तक पहुँचने से
उन्होंने कुछ बातें की
थोड़ा हँसे
मेरी पत्नी और बच्चे से वे पहली बार मिले
ढलती शाम वे पहुंचे थे
और मैं लगभग निरूपाय था उनके आगे
थोड़ा शर्मिन्दा भी
घर में नहीं थी इतनी जगह
यह एक मशहूर पहाड़ी शहर था
मैं उन्हें बाहर ले गया
जाते हुए
पत्नी ने कुछ पैसे दिए
होटल में कमरा दिलाने के वास्ते
वे मुझसे मिलने आए थे
बरसों बाद
मैंने उन्हें सुन्दर भूदृश्य दिखाए
पहाड़ और घाटी
फलों के बाग़ीचे और होटल में उनके कमरे
अगले दिन तड़के वे चले गए
घर की कुर्सियों पर छूट गया था उनका तनाव
बच्चे ने बड़े चाव से खायी उनकी लायी मिठाई
पत्नी ने कहा वे अच्छे थे
लेकिन
वे चले गए थे बिना मुझ तक पहुंचे
बिना मुझसे मिले
दूर गाँव तक पहुँच गयी थी
मेरी कुशल-बात।
Monday, November 17, 2008
कुछ पुराने भूले -बिसरे नाम: नैनीताल की यादे
जब ये ब्लॉग शुरू किया था तो कुछ इसी तरह का विचार था की ये महज एक ब्लॉग न रहे, बल्कि नैनीताल से जुड़े हुए लोगो के संस्मरणों का एक संकलन हो। इसीलिये किसी जल्दबाजी के तहत इस ब्लॉग पर नियमित पोस्ट डालने की कोई बाध्यता नही है। कुछ मित्र जुड़े, जो कभी-कभार कुछ लिख देते है, फ़िर चुप्पी साध कर बैठ जाते है।, पर जितना भी लिखते है, बेहतर लिखते है। एक तरह से ये ब्लॉग हमारे अपने समय का और अपने जीवन का दस्तावेज़ है। इसी की कड़ी में आज आपके साथ फ़िर से प्रोफेस्सर तेजेंद्र गिल के कुछ संस्मरण बांटते है, जो मुझे एक व्यक्तिगत ईमेल के तहत प्राप्त हुए है, पर उनकी इजाज़त से इसे यहाँ ब्लॉग पर प्रकाशित किया जा रहा है।
इसी बहाने प्रोफ़ेसर गिल की कुछ बातें मुझे भी याद है। आज १८ साल बाद भी उनकी जो छवि मन में आयी, वो मेरी यादों में कुछ इस तरह से है, बेहद सलीके से मरून पगडी बांधे और अक्सर नीले या फ़िर काले सूट में , बेहद सज्जन रॉब-दाब वाले प्रोफ़ेसर। बेहद अच्छे चित्र ब्लेकबोर्ड पर क्लास शुरू होने के पहले ही बने रहते थे। और एक बड़ी अच्छी लिखावट और उम्दा चित्रकारी करते हुए, जिस तरह से प्रोफ़ेसर गिल पढाते थे, वो लाज़बाब तरीका था। इस तरह से पढाते हुए मेने कोई दूसरा प्रोफ़ेसर नही देखा। दूसरा ज़ज्बा भी था, उनका, चाहे जो हो, पर अपना पठाय्कर्म पूरा कराने का, जो यूनिवर्सिटी में हड़तालों के चलते, नैनीताल की ठण्ड में दो महीने के अवकाश के चलते, अकसर पूरा नही हो पाता था। पर फ़िर भी चाहे कोलेज बंद हो जाय, लगातार लंबे लेक्चर (तीन घंटे तक बिना रुके) लेकर भी , इतवार के दिन भी , प्रोफेस्सर गिल पढाते थे।
एक मर्तबा उन्होंने हम लोगो को ९ बजे से १२.३० तक पढाना शुरू किया, और पूरी क्लास भूखी -प्यासी इतने बड़े अन्तराल में थक गयी, और ऊपर से दिसम्बर की ठण्ड, और पूरा कोलेज बंद। अंतत: बोलने की हिम्मत किसी की नही हुयी, तो सबने एक साथ लकडी के फर्श पर पैर बजाने शुरू कर दिए। शायद मुझे कभी दुबारा मौका न मिले। इसीलिये, आज में प्रोसेस्सर गिल का तहेदिल से उन दिनों के लिए धन्यवाद भी करना चाहती हूँ। शायद उन लेक्चर्स में से मुझे आज कुछ भी याद नही है, पर काम के प्रति उनकी निष्ठा, का सबक दूर तक प्रेरणा का सबक बना रहेगा ।
-नैनीताली
अब प्रोफ़ेसर गिल की कुछ यादे यहाँ............................
--------तेजेंद्र गिल
Those are the old times now but were probably the best times in my life..........! Having lived in Naini Tal for almost four decades, I have an emotional attachment to the place and the people of that beautiful city. That is the reason I keep surfing the web looking for what is going on in Naini Tal. Just the other day looked at the picture of Dr.Ajay Rawat organizing an event at the flats Malli Tal. Oh man, the time flies fast and people begin to look different than what they looked like in 1963-65, when we were undergraduates, full of energy and coursing through the bajars of Talli Tal and Malli Tal, and of course, the famous mall road. It was then that I had first known Dr.D.D.Pant, and thereafter, never forgot that great man. He inspired me so much that I can not even describe, and I was just a student then. It was 10 years later that he offered me the position because he knew me very well through my college years. I was moved when I read about his passing away, but then I felt good that a great man had personally known me and that I had an opportunity to serve under his direction (him being the Principal and later the Vice Chancellor). I hope we still have the people who measure up to the stature of Dr.D.D.Pant, Dr.S.S Khanna (my mentor), Dr.O.N.Perti (Chemistry), Dr.R.K. Mehrotra (Botany), Dr.Gunju (Proctor). I am sure the youth of Naini Tal is still as motivated as before and that the region is progressing. Read about the aerators being installed in the lake, something that should have been done in 1960s and 70s but as long as the lake survives the human and/or environmental onslaught, it is good news. The place must have changed significantly in the 14 years that I have been out here.......!
Saturday, November 8, 2008
डी डी पन्त जी----- प्रोफ़ेसर तेजेंद्र गिल की नज़र से
आज ईमेल से प्रोफ़ेसर तेजेंद्र गिल ने, कुमाऊ विश्वविधालय के पूर्व कुलपति प्रोफसर डी डी पन्त जी को याद करते हुए ये ईमेल मुझे भेजी है। प्रोफसर गिल ने जिस किसी को भी एक बार पढाया होगा, उसे हमेशा उनकी याद रहेगी। शायद कई हजारो में से कोई एक ऐसा टीचर किसी औसत दर्जे के विश्वविधालय में मिलेगा। बहुत दिन हुए, नैनीताल छोड कर आए हुए पर अपने विधार्थी जीवन की जो अच्छी यादे है, निसंदेह जन्तुविज्ञान विभाग के प्रोफेस्सर गिल के लेक्चर और पढाने का उनका ज़ज्बा भी उसमे शामिल है।---------नैनीताली
पन्त जी के लिए----------
प्रोफ़ेसर गिल
I was doing the google search for the people I knew while I was at Naini Tal (1954 - 1995), and read about the sad demise of Dr.D.D. Pant. Dr.Pant knew me personally when I was a student in B.Sc. (1965) and M.Sc. (Zoology, 1967) at Thakur Deb Singh Bisht Government College, Naini Tal. In 1970, while I was finishing up my Ph.D. under Dr.S.S. Khanna, one fine morning these two most respectable figures at the time, walked into the lab, and Dr.Pant asked me a question (all in Hindi)........."Tejendra Singh, do you still want to join the army or you want to teach here....". My immediate response was "yes, Sir, I would like to teach as lecturer here". And that was the beginning of my teaching career. I had the necessary credentials and I was a turbaned Sikh. The point I am trying to make is that Dr.Pant offered me the job because in his opinion that was in the best interest of the institution he was heading at the time. He was a visionary, a role model, and a top scientist. His motivation to upgrade the DSB College to the status of a state university was so strong that despite all the hurdles, he succeeded in his mission. The Kumaun University, Naini Tal, is a testimony to the strong will power and tireless efforts of a man who was determined to provide better education and career opportunities to the people of Kumaon. He was an inspiration to thousands of young men and women of the region, and I wish his ideals are upheld and passed down the generations. Not many people make a difference in the lives of the common man but Dr.Pant stood out and spent all his life making significant contributions to the science and socio-economic growth, which have been well recognized. I pay my homage to this great man who showed me, and thousands others the path to a successful career and a more meaningful life. A befitting memorial to Dr.D.D. Pant would be the most appropriate way for the people of Kumaon to express their appreciation for his contributions. (Dr.Tejendra Singh Gill, University of Houston, Houston, Texas, USA)