भाई प्रेम ने पंडित छन्नूलाल मिश्र की दिगंबर होली का ज़िक्र किया तो मैंने 'रेडियोवाणी' पर इसके आडियो का लिंक टिप्पणी में दे दिया , स्वप्नदर्शी का सुझाव है कि मैं आडियो यहीं क्यों न लगा दूँ। इन दोनो मित्रों के सानिध्य में इस तीसरे नैनीताली को आलसीपने के लगभग स्थायी भाव को त्यागना ही पड़ा. तो आइए सुनते है पंडित छन्नूलाल मिश्र के दिव्य स्वर में दिगंबर होली...
ये ब्लॉग प्रवासी उत्तराखंड के लोगो का ब्लॉग है, जो देश -विदेश के हिस्सों मे दुनियाभर मे बिखरे हुए है. एक बड़ा हिस्सा उन भूतपूर्व विधार्थियों का भी है, जो एक अलग सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत लिए उत्तराखंड के स्कूल- कोलेजो मे पढने आए और अपने बनने -बिगड़ने की जद्दोजहद मे चाहे आज कुछ भी बने हो, पर उनका मानस विशुद्द रूप से उत्तराखंड की संस्कृति से सरोबार है। इसमे जाती, धर्म, या संकुचित क्षेत्रीयता नही है, और जो भी उत्तराखंड के मित्र यहाँ आना चाहे ईमेल भेजे; nainitaali@gmail.com
Monday, May 11, 2009
पंडित छन्नूलाल मिश्र के दिव्य स्वर में दिगंबर होली
भाई प्रेम ने पंडित छन्नूलाल मिश्र की दिगंबर होली का ज़िक्र किया तो मैंने 'रेडियोवाणी' पर इसके आडियो का लिंक टिप्पणी में दे दिया , स्वप्नदर्शी का सुझाव है कि मैं आडियो यहीं क्यों न लगा दूँ। इन दोनो मित्रों के सानिध्य में इस तीसरे नैनीताली को आलसीपने के लगभग स्थायी भाव को त्यागना ही पड़ा. तो आइए सुनते है पंडित छन्नूलाल मिश्र के दिव्य स्वर में दिगंबर होली...
होली (शिव जी की)
ये होली पंडित मिश्रा के स्वर में सुनी थी बहुत साल पहले, सीधे बनारस से लाइव:
पेश है:
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खेलैं मसाने में होरी दिगंबर खेले मसाने में होरी
भूत पिशाच बटोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी.
लखि सुंदर फागुनी छटा के, मन से रंग-गुलाल हटा के,
चिता, भस्म भर झोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी.
गोप न गोपी श्याम न राधा, ना कोई रोक ना, कौनाऊ बाधा
ना साजन ना गोरी, ना साजन ना गोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी.
नाचत गावत डमरूधारी, छोड़ै सर्प-गरल पिचकारी
पीतैं प्रेत-धकोरी दिगंबर खेले मसाने में होरी.
भूतनाथ की मंगल-होरी, देखि सिहाएं बिरिज की गोरी
धन-धन नाथ अघोरी दिगंबर खेलैं मसाने में होरी.
पेश है:
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खेलैं मसाने में होरी दिगंबर खेले मसाने में होरी
भूत पिशाच बटोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी.
लखि सुंदर फागुनी छटा के, मन से रंग-गुलाल हटा के,
चिता, भस्म भर झोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी.
गोप न गोपी श्याम न राधा, ना कोई रोक ना, कौनाऊ बाधा
ना साजन ना गोरी, ना साजन ना गोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी.
नाचत गावत डमरूधारी, छोड़ै सर्प-गरल पिचकारी
पीतैं प्रेत-धकोरी दिगंबर खेले मसाने में होरी.
भूतनाथ की मंगल-होरी, देखि सिहाएं बिरिज की गोरी
धन-धन नाथ अघोरी दिगंबर खेलैं मसाने में होरी.
Wednesday, May 6, 2009
बारिश मे गुजरते हुए
बारिश और बारिश
धुंध और कोहरे के दिन
बहुत पुराना रिश्ता है
धुंध, कोहरे और बारिश से मेरा
बारिश मे ये शहर एक शहर नही रहता
समय और काल के पार घुलमिल जाता है
कई दूसरे शहरो से .....................
कभी बारिश मे गुजरते हुए
कई बारिशो की याद युं उठ आती है अचानक
जैसे पहली बारिश के बाद
उठ आती थी मिट्टी की खुशबू
सील जाती थी माचीस की तीली
और बंद पड़े डिब्बे मे चीनी .....
या सर उठाती है इच्छा
गरमागरम चाय की
या फ़िर जैसे जहन मे देर सबेर
कौंध जाती है
एक मटमैली नदी
और पंक्तिया उन कविताओ की
जो मुडी-तुडी शक्ल मे
किसी जेब से निकलती थी ....................
बारिश के बीच बारिश की स्मृति
कुछ यु भी आती है
जैसे बचते-बचाते
चप्पल के नीचे आ जाता था एक केचुआ
जीवन और मृत्यु
पाप और पुण्य का फैसला सुनाने
और एक लिजलिजापन भीतर तक उतर जाता था......
बारिश के बीच याद आती है,
बहुत सी सर्द और गर्मजोशी से
लबालब मुलाकाते
और वों बहुत से दोस्त
जिनका पता -ठिकाना खो गया है..................
और बारिश के बाद के बहुत सुकूनदेह है
घुले-घुले और धुले से सन्नाटे मे
गीली धुप और वों कुछ ठहरे हुए पल
जो स्मृति से उबर गए है
और भागम-भाग से बचे हुए है.....
बहुत पुराना रिश्ता है
धुंध, कोहरे और बारिश से मेरा
बारिश मे ये शहर एक शहर नही रहता
समय और काल के पार घुलमिल जाता है
कई दूसरे शहरो से .....................
कभी बारिश मे गुजरते हुए
कई बारिशो की याद युं उठ आती है अचानक
जैसे पहली बारिश के बाद
उठ आती थी मिट्टी की खुशबू
सील जाती थी माचीस की तीली
और बंद पड़े डिब्बे मे चीनी .....
या सर उठाती है इच्छा
गरमागरम चाय की
या फ़िर जैसे जहन मे देर सबेर
कौंध जाती है
एक मटमैली नदी
और पंक्तिया उन कविताओ की
जो मुडी-तुडी शक्ल मे
किसी जेब से निकलती थी ....................
बारिश के बीच बारिश की स्मृति
कुछ यु भी आती है
जैसे बचते-बचाते
चप्पल के नीचे आ जाता था एक केचुआ
जीवन और मृत्यु
पाप और पुण्य का फैसला सुनाने
और एक लिजलिजापन भीतर तक उतर जाता था......
बारिश के बीच याद आती है,
बहुत सी सर्द और गर्मजोशी से
लबालब मुलाकाते
और वों बहुत से दोस्त
जिनका पता -ठिकाना खो गया है..................
और बारिश के बाद के बहुत सुकूनदेह है
घुले-घुले और धुले से सन्नाटे मे
गीली धुप और वों कुछ ठहरे हुए पल
जो स्मृति से उबर गए है
और भागम-भाग से बचे हुए है.....
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