गाढ़े कैनवस पर दूर तक खिंचती जाती है खुशी की रोशन लकीर
किसी संकरी गली के मुहाने से झांकती है उम्मीद
बहुत देर तक खाईयों बीच झूलता है एक पुल
धीमें कहीं गुपचुप बजता है एक राग- "पीलू"
जब तब सौंफ की महक उठती है ,
स्वाद उकेर देता है कोई स्मृति में
रह रह कर बारिश की बूंदे झरती हैं ,
हौले हौले अधूरा इन्द्रधनुष बनता है
जलतरंग के मोह में एक बच्चा कंकण फेंकता चलता है
और बस अभी अभी
एक मछली खेलती दिखती है तरणताल में
तय जगह कोई मयस्सर नही
अजाने ही स्मृतियाँ हवा सी सरसराती
रेत में लहर बन बहती हैं
बस ज़रा सी देर को कभी भी, कंहीं भी....
किसी संकरी गली के मुहाने से झांकती है उम्मीद
बहुत देर तक खाईयों बीच झूलता है एक पुल
धीमें कहीं गुपचुप बजता है एक राग- "पीलू"
जब तब सौंफ की महक उठती है ,
स्वाद उकेर देता है कोई स्मृति में
रह रह कर बारिश की बूंदे झरती हैं ,
हौले हौले अधूरा इन्द्रधनुष बनता है
जलतरंग के मोह में एक बच्चा कंकण फेंकता चलता है
और बस अभी अभी
एक मछली खेलती दिखती है तरणताल में
तय जगह कोई मयस्सर नही
अजाने ही स्मृतियाँ हवा सी सरसराती
रेत में लहर बन बहती हैं
बस ज़रा सी देर को कभी भी, कंहीं भी....
No comments:
Post a Comment