Friday, December 21, 2007

बात नैनीताल की

(यह ग़ज़ल हमारे समय के महत्वपूर्ण कवि बल्ली सिंह चीमा की है |२ सितम्बर १९५२ को अमृतसर जिले के चीमाखुर्द गांव में जन्मे बल्ली भाई किसान कवि हैं | उनके तीन कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं|वे नैनीताल की तराई में रहते हैं | उनके तीसरे संग्रह 'तय करो किस ओर हो'के फ्लैप पर सुप्रसिद्ध आलोचक अवधेश प्रधान ने लिखा है-" वह अपनी धरती को बेहद चाहने वाला कवि है ; नैनीताल और तराई का सहज नैसर्गिक सौन्दर्य और उसके प्रति कवि का गहरा लगाव गजलों में उतर आया है|"

अब यहां पल में वहां कब किस पे बरसें क्या खबर ,
बदलियां भी हैं फरेबी यार नैनीताल की |

लोग रोनी सूरतें लेकर यहां आते नहीं ,
रूठना भी है मना वादी में नैनीताल की |

अर्द्धनंगे जिस्म हैं या रंगबिरंहगी तितलियां ,
पूछती है आप ही से 'माल'* नैनीताल की |

ताल तल्ली हो कि मल्ली चहकती है हर जगह,
मुस्कराती और लजाती शाम नैनीताल की |

चमचमाती रोशनी में रात थी नंगे बदन ,
झिलमिलाती , गुनगुनाती झील नैनीताल की |

खूबसूरत जेब हो तो हर नगर सुन्दर लगे ,
जेब खाली हो तो ना कर बात नैनीताल की |

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1 नैनीताल की माल रोड

2 comments:

स्वप्नदर्शी said...

बहुत अच्छे. बल्ली सिंह चीमा जी की "ले मशाले चल पडे है" की भी मुझे खूब याद है.

Bhupen said...

नैनीताल पर बल्ली भाई ने एक बहुत ही ख़ूबसूरत गीत लिखा है--चांदी-चांदी हुए हैं पत्थर के घर. ये गीत कभी 'पहाड़' में प्रकाशित हुआ था. दिल्ली में अपने पास बहुत तलाशने पर भी ये मुझे नहीं मिल रहा. पिछली बार बल्ली भाई दिल्ली आए थे तो उनसे पूरा गीत तरन्नुम में सुना था लेकिन नोट नहीं कर पाया. आप में से किसी के पास वो गीत हो तो कृपया उसे भी बलॉग पर चेप दें.