Thursday, June 19, 2008

नैनीताल

एक आदमी है

जो मन ही मन बेतरह बड़बड़ाता है

अपनी ही किसी धुन में

बेआवाज़

गुनमुन-गुनमुन न जाने क्या-क्या

बोलता जाता है

मुझे मालूम है

अपने ही अन्दर के पानी में खड़ा

बेशुमार लोगों

और मकानों से घिरा वह

अपनी विपित्तयों का इतिहास

लिख रहा है

और भीड़ भरे रास्तों से

एक नामालूम भाषा में जूझता

बहुत बड़ा

बहुत खूबसूरत दिख रहा है।

8 comments:

स्वप्नदर्शी said...

Bahut baDhiya kavitaa...

subah subah din ban gaya.

siddheshwar singh said...

बहुत सुंदर!
आनंद!!
स्वागत!!!

Anonymous said...

अपने ही अन्दर के पानी में खड़ा
बेशुमार लोगों
और मकानों से घिरा वह


Kya baat kahi hai, bahut khoob

pallavi trivedi said...

ek alag andaaz ki sundar kavita...

Ashok Pande said...

महाकवि शिरीष जी को नमन!

Udan Tashtari said...

वाह! बहुत उम्दा.

Anonymous said...

It is very nice to read your blogs. Keep it up!

Anonymous said...

hum bhi nainital ke hai.