एक आदमी है
जो मन ही मन बेतरह बड़बड़ाता है
अपनी ही किसी धुन में
बेआवाज़
गुनमुन-गुनमुन न जाने क्या-क्या
बोलता जाता है
मुझे मालूम है
अपने ही अन्दर के पानी में खड़ा
बेशुमार लोगों
और मकानों से घिरा वह
अपनी विपित्तयों का इतिहास
लिख रहा है
और भीड़ भरे रास्तों से
एक नामालूम भाषा में जूझता
बहुत बड़ा
बहुत खूबसूरत दिख रहा है।
8 comments:
Bahut baDhiya kavitaa...
subah subah din ban gaya.
बहुत सुंदर!
आनंद!!
स्वागत!!!
अपने ही अन्दर के पानी में खड़ा
बेशुमार लोगों
और मकानों से घिरा वह
Kya baat kahi hai, bahut khoob
ek alag andaaz ki sundar kavita...
महाकवि शिरीष जी को नमन!
वाह! बहुत उम्दा.
It is very nice to read your blogs. Keep it up!
hum bhi nainital ke hai.
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